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तब / महादेवी वर्मा
Kavita Kosh से
शून्य से टकराकर सुकुमार
करेगे पीड़ा हाहाकार,
बिखर कर कन कन में हो व्याप्त
मेघ बन छा लेगी संसार!
पिघलते होंगे यह नक्षत्र
अनिल की जब छूकर निश्वास,
निशा के आँसू में प्रतिबिम्ब
देख निज काँपेगा आकाश!
विश्व होगा पीड़ा का राग,
निराशा जब होगी वरदान,
साथ लेकर मुर्झाई साध
बिखर जायेंगे प्यासे प्राण।
उदधि मन को कर लेगा प्यार
मिलेंगे सीमा और अनन्त,
उपासक ही होगा आराध्य
एक होंगे पतझार बसन्त।
बुझेगा जलकर आशादीप
सुला देगा आकर उन्माद,
कहाँ कब देखा था वह देश
अतल में डूबेगी यह याद!
प्रतीक्षा में मतवाले नैन
उड़ेंगे जब सौरभ के साथ,
हृदय होगा नीरव आह्वान
मिलोगे तब क्या हे अज्ञात!