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तभी / अनीता वर्मा
Kavita Kosh से
जब पहाड़ और झीलें तरंगित होने लगें समुद्रों में
पेड़ चिड़ियों के मित्र बन जाएँ
और उन्हें काटने की कुल्हाड़ियाँ बननी बंद हो जाएँ
दुनिया भर की बन्दूकें किसी अतल में दफ़ना दी गई हों
फौजी बूटों के मिट जाएँ कारख़ाने
बच्चों की हँसी से दमक उठें युवाओं के चेहरे
पृथ्वी बीजों का उत्साह गाने लगे
थकान और पसीने से भरी हो मिट्टी
कलुष और ईर्ष्या मरें अपने ही विष से
तभी मैं जागूँगी
धूप रोशनी और प्रेम के बीच
आऊँगी इस दुनिया में