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तमन्ना ख़ाक होकर जब उड़ेगी / देवी नांगरानी
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तमन्ना ख़ाक होकर जब उड़ेगी
तो दिल को चैन भी क्या ख़ाक देगी
सुनारों की हों चोंटे भी हज़ारों
लुहारो की न चोटों से बचेगी
भले रफ्तार कितनी भी बढ़ा लें
फकत दो गज़ जमीं उनको मिलेगी
सुनो जो ध्यान से खामोशियों को
जुबां गूंगो की भाषा पा सकेगी
फरेबों ने हिला दी नींव जिसकी
यकीं पर क्या इमारत वो टिकेगी
बनेगी सीप में मोती यकीनन
रवानी आसुओं की जब थमेगी
जो पलड़ा झूठ का भारी हो ‘देवी’
सदाकत थर थरा कर काँप उठेगी