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तमाम उम्र सितम हमपे वो हज़ार करे / कांतिमोहन 'सोज़'
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तमाम उम्र सितम हमपे वो हज़ार करे I
बस एक बार ज़मीर उसको शर्मसार करे II
कई हज़ार तरीक़े हैं ख़ुदखुशी के मियाँ,
बशर को अब नहीं लाज़िम किसी को प्यार करे I
हरेक बात पे तकरार ही नहीं अच्छी,
कभी तो प्यार का अन्दाज़ इख़्तियार करे I
सुना है उसको अज़ाबों का कोई ख़ौफ़ नहीं,
हमारा ज़िक्र भी ज़ालिम कभी-कभार करे I
हमारे बाद रक़ीबों पे कोई क़ैद न हो,
किसी भी हीले से जो चाहे ज़िक्रे-यार करे I
किसी भी हाल में जी लेंगे बेहया होकर,
कहाँ तलक कोई मरने का इन्तज़ार करे II