भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तमाम शह्र में जिस अजनबी का चर्चा है / शहरयार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तमाम शह्र में जिस अजनबी का चर्चा है

सभी की राय है, वह शख़्स मेरे जैसा है।


बुलावे आते हैं कितने दिनों से सहरा के

मैं कल ये लोगों से पूछूंगा किस को जाना है।


कभी ख़याल ये आता है खेल ख़त्म हुआ

कभी गुमान गुज़रता है एक वक़्फ़ा है।


सुना है तर्के-जुनूँ तक पहुँच गए हैं लोग

ये काम अच्छा नहीं पर मआल अच्छा है।


ये चल-चलावे के लम्हे हैं, अब तो सच बोलो

जहाँ ने तुम को कि तुम ने जहाँ को बदला है।


पलट के पीछे नहीं देखता हूँ ख़ौफ़ से मैं

कि संग होते हुए दोस्तों को देखा है।


शब्दार्थ :

मआल=नतीजा या परिणाम; संग=पत्थर