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तमाम शै में वो अक्सर दिखाई देता है / समीर परिमल

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तमाम शै में वो अक्सर दिखाई देता है
बड़ा हसीन ये मंज़र दिखाई देता है

ग़मों की धूप में जलती हुई निगाहों को
सनम वफ़ा का समंदर दिखाई देता है

तुम्हारे हाथ की इन बेज़ुबाँ लकीरों में
हमें हमारा मुक़द्दर दिखाई देता है

बना लिया है जो शीशे का घर यहाँ मैंने
हर इक निगाह में पत्थर दिखाई देता है

सभी के हाथ सने हैं लहू से रिश्तों के
सभी की पीठ में ख़ंजर दिखाई देता है

उगेंगी अम्न की फ़स्लें कहो भला कैसे
यहाँ तो खेत ही बंजर दिखाई देता है