भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तमाशा / प्रेरणा सारवान

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आवाज कभी शोर नहीं करती
जब देखो तब
मन के टीलों पर चढ़कर
खामोशी ही चिल्लाती है
बाहर भीतर
हर तरफ
उद्दण्ड, विक्षिप्त
युवा लड़की की तरह
द्वन्द्वों के पागलखाने से
भागते हुए
मैं दोनों को
कुछ नहीं कहती
चुपचाप देखती हूँ
अपने जीवन का
असफल तमाशा।