भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तमाशा / मदन कश्यप
Kavita Kosh से
सरकस में शेर से लड़ने की तुलना में
बहुत अधिक ताकत और हिम्मत की जरूरत होती है
जंगल में शेर से लड़ने के लिए
जो जिंदगी की पगडंडियों पर इतना भी नहीं चल सका
कि सुकून से चार रोटियां खा सके
वह बड़ी आसानी से आधी रोटी के लिए रस्सी पर चल लेता है
तमाशा हमेशा ही सहज होता है क्योंकि इसमें
बनी-बनाई सरल प्रक्रिया में चीजें लगभग पूर्व निर्धारित गति से
चलकर पहले से सोचे-समझे अंत तक पहुंचती हैं
कैसा होता है वह देश
जिसका शासक बड़े से बड़े मसले को तमाशे में बदल देता है
और जनता को तमाशबीन बनने पर मजबूर कर देता है!