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तम्बू कै म्हां पवन जागता फौज पड़ी सौवै थी / मेहर सिंह

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वार्ता- रास्ते में रात को गहरे जंगल में सेना का पड़ाव डाला जाता है। पवन कोरात को नींद नहीं आ रही थी उसी समय वह वृक्ष पर बैठे चकवा चकवी की वार्ता सुनता है चकवा चकवी आपस में क्या वार्ता करते हैं-

आधी रात परिन्दे बोले वा चकवी जंग झोवै थी
तम्बू कै म्हां पवन जागता फौज पड़ी सौवै थी।टेक

चकवी कहण लगी चकवे नै प्रेम जाल मैं फंसकै
ओम नाम नै भूल गये सब घरवासे मैं धंस कै
धर्म की चर्चा करणी चाहिए तलै राम कै बस कै
कुछ कहो बात त्रिया की जात ज्यूं रात कटै हंस हंस कै
मीठे बोल सुरीले बोलै वा चकवे नै मोहवै थी।

सही सांझ का कहर्या सूं आ ली रात शिखर में
चकवी आंख लागती कोन्या बैरण तेरे फिकर मैं
दो दिन का जीणा दुनियां मैं गर्दिश के चक्कर मैं
राजकुमार पवन का न्याय तेरे आगै करूं जिकर मैं
इसकी अंजना राणी कैद पड़ी दुःख अपणें नै रौवै थी।

बात कहण का मौका कोन्या वो चकवा फेर न्यू बोल्या
पाप जगत मैं फैल गये धरती का परदा डोल्या
पवन राज बैरी पै पड़ियों आज गजब का गोला
आंख मसलती वा चकवी रैहगी ना भेद बात का खोल्या
पाखंड कै म्हां फंस कै दुनियां सहम डले ढोवै थी।

हुई बात कहणें मैं चकवी नहीं दोष म्हारा सै
सन्ता के डेरे मैं यो पापी पवन राज आरह्या सै
गाम बरोना जाट मेहर सिंह लय सुर में गार्या सै
लखमीचन्द पै ज्ञान लिया न्यूं तम नै समझार्या सै
पतिव्रता सेवा करण लागगी जौ गंगा मैं बोवै थी।