तम नाश हेतु दीप जलाते सदैव हैं।
मुश्किल अगर हो पाँव बढ़ाते सदैव हैं॥
जो दूसरों की पीर से अनजान बन रहे
वो ज़िन्दगी में दर्द उठाते सदैव हैं॥
अपने पड़ोसियों की हँसी मत उड़ाइए
दुख आपदा में काम वह आते सदैव हैं॥
काँटे बिखेरते हैं दूसरों की राह पर
वो हर कदम पर ठोकरें खाते सदैव हैं॥
हैं और किसी का जो भाग छीनने लगे
अपनी मुसीबतों को बुलाते सदैव हैं॥
मत बोलिए कि राम है सुनता नहीं कभी
दिल से पुकार लीजिए आते सदैव हैं॥
श्रद्धा भरे हृदय न उन्हें छेड़िए कभी
मर कर भी आस्था को बचाते सदैव हैं॥