भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तम में कोई नरभक्षी है / श्रीकृष्ण शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह सूरज है,
चित्र फलक तक !

पेड़ गए
भीतर बंगलों में,
सिर्फ प्रदूषण
है क़त्लों में !

यह है आग
कि जिससे बचना
मुश्किल है अब
उच्च फलक तक !

शहर नहीं
केवल राहें हैं,
धुआँ-धुँध है
अफ़वाहें है,

तम में
कोई नरभक्षी है,
घूर रहा
जो मुझको अपलक !

सुन्दरता
केवल फ़रेब है,
मन बाँधे जो
पाऽजेब है !

सब डूबे
उसके सम्मोहन,
अपनी खुशियाँ
सिर्फ ललक तक !

यह सूरज है
चित्र-फलक तक !