भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तय है एक दिन / पद्मजा शर्मा
Kavita Kosh से
मैं कब से कह रहा हूँ
तुम कब तक रहोगी चुप
तुम्हें भी कहना पड़ेगा
प्रेम से
एक दिन देख लेना
प्रेम
मैं तुम तक आने के लिए
कब से चल रहा हूँ
तुम कब तक रूक रहोगी
चलना पड़ेगा
प्रेम से
एक दिन देख लेना
जब हो जाएगा तुमको मुझसे
प्रेम
तुम अगर यह सब यूँ ही कहते रहे
तो तय है एक दिन
सुनते-सुनते
मैं भी सुनने लगूंगी तुम्हारी ही तरह
तुम को प्रेम।