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तय हो गया है जैसे / मोहन कुमार डहेरिया

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तय हो गया है जैसे
सम्भव नहीं दोनों के बीच एक ही घर में अब
मनुष्यों की तरह जीवन गुज़ारना
इसलिए पत्नी किसी वैम्पायर की
एक बोतल ताज़े ख़ून की इच्छा-सी करती है पति से
साड़ी लाने की फ़रमाइश
पति रख देता है पत्नी की हथेली पर जवाब में
डंक उठाए बिच्छू की शक्ल में नोटों की एक गड्डी

रह रहे हैं दोनों वर्षों से साथ-साथ
बच्चे भी उनके बड़े-बड़े इसलिए चाहते हैं
दोनों के बीच हो एक अच्छे पति-पत्नी की तरह
जीवन के किसी भी मुद्दे पर सहज और सम्प्रेषणीय सम्वाद
समझ नहीं पाते लेकिन एक दूसरे के सामने आते ही
कैसे अनियन्त्रित हो जाती है उनकी भाषा
कैसे हिंसक हो जाता है उनका मन्तव्य

बहुत किए इस समस्याओं से
निजात पाने के लिए उन्होंने उपाय
मिले मनोवैज्ञानिकों से
मित्रों ने बीच में पड़कर की समझाने की कोशिश
गए अपने-अपने बीते हुए समय में भी वे मीलों पीछे
कि शायद हों उनके अतीत की मिट्टी में दबे
इस उन्मादी व्यवहार के बीज
राख ही राख थी वहाँ तो बीते हुए समय की
सम्भव नहीं थी जिससे कोई
जीवन्त और ठोस उत्तर की उम्मीद
किया फिर भी दोनों ने हर बार संकल्प
चाहे जो भी हो बच्चों की ख़ातिर ही सही
भंग नहीं होने देनी है अब पति-पत्नी के सम्बन्धों की गरिमा
लेकिन तय हो गया था जैसे
पड़ी जब अगले दिन उनकी शादी की वर्षगाँठ
तो दिन में एक भव्य समारोह के बाद
रात में प्रेम के अन्तरंग क्षणों में
पति ने एक तलवार की नोक से खोले
पत्नी के ब्लाउज के हुक
हटाए उसके शरीर के सारे वस्त्र
कर रहा हो मानों एक-एक करके
दुश्मन देश के सैनिकों के सिर धड़ से अलग
पत्नी ने भी कूटनीतिज्ञ की तरह डाली
पति के गले में बाँहें
किया फिर किसी विषकन्या की तरह
उसके होंठों का चुम्बन
जाहिर है उठे जब सुबह दोनों
सुनाई देती रही उन्हें देर तक
अपनी-अपनी आत्मा के सूखे कुण्ड में
एक जैसे हरे कच्चे ज़हर की बूँदों के टपकने की आवाज़