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तरक्क़ी के शिख़र पर जा के भारत मुस्कुराता है / अनु जसरोटिया

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 तरक्क़ी के शिख़र पर जा के भारत मुस्कुराता है
बड़ा ऊँचा मुक़द्दर हो तो ऐसा वक्त आता है

जिधर देखो उधर ही कारख़ाने जगमगाते हैं
गुलिस्तानों में पँछी डालियों पर चहचहाते हैं
जिसे देखो वही आज़ादियों के गीत गाता है
बड़ा ऊँचा मुक़द्दर हो तो ऐसा वक्त आता है

शहीदों के लहू ने हम को आज़ादी दिलाई है
ये आज़ादी कोई ख़ैरात में हम ने न पाई है
बचायेंगे इसे ये हर कोई सौगंध खाता है
बड़ा ऊँचा मुक़द्दर हो तो ऐसा वक्त आता है

सलाम ऐ मादरे-हिन्दोस्ताँ तेरे तिरंगे को
कि झुक कर चूमता है आस्माँ तेरे तिरंगे को
तिरंगे के लिए तो आस्माँ भी सर झुकाता है
बड़ा ऊँचा मुक़द्दर हो तो ऐसा वक्त आता है

मिरे भारत तिरी फ़ौजों से दुश्मन थरथराते हैं
तिरे जाँ-बाज़ अपनी जान पर भी खेल जाते हैं
तिरी फ़ौजों को जब भी कोई मौक़ा आजमाता है
ख़ुशा ऐ दिल ज़माना गीत आज़ादी के गाता है

हमेशा क़ाइम-ओ-दाइम रहे तू ऐ मिरे भारत
ऋषि मुनियों की गाथाएँ कहे तू ऐ मिरे भारत
तिरा तो कृष्ण जी से, राम से, गौतम से नाता है
शहीदाने-वतन के गीत हर ज़र्रा सुनाता है

तुझे नज़राने जाँ के पेश कर जायेंगे ऐ भारत
ख़ुशी से हम तिरी राहों में मर जायेंगे ऐ भारत
कभी हम को अगर भारत हमारा आजमाता है
बड़ा ऊँचा मुक़द्दर हो तो ऐसा वक्त आता है