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तरक्की / चंद्रदेव यादव

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अठारह के जगह
देवे के भइल जब एकइस रुपया
त चन्नर बाबू चिहा के पुछलैं
दुकानदार से
'लाइफ बाय महँगा हो गइल?'
जबाब मिलल
'देस तरक्की करत ह l'

चन्नर बाबू क चेहरा
न भिंचल, न खिंचल
न आँख भइल रतनार
दुकानदार के कहे के ढंग पर
कसैला हो उठल मन
फनफनाइल ना
हो गइल सहज, सोचलैं
देस अ समाज के बिडम्बना पर
आँस बहावे वाली, या
कबों-कबों सड़क पर आ के
लाल-पीयर होवे वाली
जनता के कहे आ गइल ह
बात कहे क सलीका!

तरीका!
सब कहत ह उहै सीखा
जवन सीख लिहले हवें
सादी के नाँव पर
लइकिन के बाप के ठगे वाला
पाँचवी फेल 'बच्चा'
परधानी के चुनाव में हारल
चवन्नी छाप नेता
रामू-सामू अ चुन्नू-मुन्नू क चच्चा
जइसे बीबीए कइके
लइका बन गइल ह बिल गेट्स!
सीधे ना बोलेलॅँऽ कहेलँऽ
लइका के कमाई क सुख
आप क लइकिए न लेई?
फिर कुल बोझा हमहीं उठाईं?
ई त अन्याव होई न
कि राउर सहर में मकुराईं
अ हम मड़ई में दिन बिताईं!
की त सादी कइके
लइका अपने सङे ले जाईं
अ ओहरै कतों ऐडजस्ट कराईं
की लइका के पढ़ाई पर आइल खर्चा
आपै उठाईं l'

दुकान के बहरे
एक आदमी बाँटत रहल अनुभव
दुसरके से l
चन्नर बाबू क जम गइल पाँव
गदहबेला में
अन्हरापुल के फ्लाई ओवर के पास
दुकनदार के दोस्त क बात सुन के
सोचलैं-धरती पर ना
असमान में हवै गाँव क पाँव
इहाँ देसी भेंड़
बन गइल हईं दुम्मा l
चुटकी भर चाँदनी से
असमान लीपे वाला
चुल्लू भर पानी में बूड़त-उतिरात हवें
भलहीं ओनकर बिटिया हों करिया-भुजंग
बाकी लइका बदे चाहत हवें
इन्नर क परी
सिच्छित-संस्कारी
गुनवंती-भगवंती
सादी के बाद नोकरी करे वाली
उफ़! मोती क माला अ फुटही थाली!

छन भर में
कउनो बुरा सपना से
गुजर गइलैं चन्नर बाबू
कि ओही घरी
दुकनदार क मीठी आवाज आइल
' का सोचत हईं साहेब!
हमार बात अनरुच लग गइल का?
बइठीं! सुस्ताईं!
अबहीं ट्रेन छूटै में देरी ह
तबले इहवैं गपियाईं! '
चन्नर बाबू देवै जात रहलें जबाब
कि एक ठे गाहक क कइके हिसाब
दुकानदार फिर बोलल
हमरे दोस्त से पूछीं
सत्तर दुआर घूम आइल हवैं
सबके थरिया क नीमक
चीख आइल हवैं,
हमरे दुकान पर
हर तरह क लोग आवेलँ
लइका वाला सेखी बघारेलँ
लइकी वाला लइका वालन के
कोसेलँ, गरियावेलँ!
हमें त बुझाला
ई गाजीपुर-बनारस वाला
लइकिन के बाप क
निकाल देत हवैं दिवाला l
सच में, लइकी के सादी में
लइकी के घरे पितरपख
अ लइका के घरे देवारी ह
ई समाज के नाँव पर गारी ह l'

देस तरक्की करत ह
मतलब रामराज आवे वाला ह
फिर न कतों रोग होई न सोक होई
हर जगह पिज्जा-बर्गर
पेप्सी आउर कोक होई l
पूत क पाँव पालने में देखात ह
सुखई क थरिया सूनी ह
परधान क कमाई दिन-रात बढ़त दूनी ह!
मिड डे मील से ओनके घरे
बोलेरो आ गइल
नरेगा, आँगनबाड़ी से
सिंहासन पर सोना मढ़ा गइल
सच में, रामराज क लाली
दलाली में ह
बैपार में ह, भ्रस्टाचार में ह,
सिधवा के सब गदहपचीसी पढ़ावत ह
चैन से जिये वालन के केहू
हाड़ फेंक के लड़ावत ह l

चन्नर बाबू टेसन की ओर
चल पड़लैं
दिमाग अबहियों
देस के तरक्की के हुक में
टँगल रहल,
सर झटक के कहलैं
' तरक्की माने कटहर!
आधी आबादी
अपने अस्मिता खातिर लड़त ह
सौ करोड़ लोगन क दुख लगातार बढ़त ह
काहे से
रुपिया क माई पहाड़ चढ़त ह l