भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तरणि तनया तीर आवत हें प्रात समे / कृष्णदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तरणि तनया तीर आवत हें प्रात समे गेंद खेलत देख्योरी आनंद को कंदवा।
काछिनी किंकणि कटि पीतांबर कस बांधे लाल उपरेना शिर मोरन के चंदवा॥१॥
पंकज नयन सलोल बोलत मधुरे बोल गोकुल की सुंदरी संग आनंद स्वछंदवा।
कृष्णदास प्रभु गिरिगोवर्धनधारी लाल चारु चितवन खोलत कंचुकी के बंदवा॥२॥