भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तरबूज / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
तरबूज
प्लेट में कटा धरा है
हलाल हो गई आग
हरे सूर्य की
पेट में पहुँचने से पहले
(रचनाकाल : 28.03.1967)