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तरसत जियरा हमार नैहर में (कजरी) / खड़ी बोली

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

तरसत जियरा हमार नैहर में ।

बाबा हठ कीनॊ, गवनवा न दीनो
बीत गइली बरखा बहार नैहर में ।

फट गई चुन्दरी, मसक गई अंगिया
टूट गइल मोतिया के हार, नैहर में ।

कहत छ्बीले पिया घर नाही
नाही भावत जिया सिंगार, नैहर में ।