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तरस रहा हूँ मगर तू नज़र न आ मुझको / फ़राज़

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तरस रहा हूँ मगर तू नज़र न आ मुझ को
कि ख़ुद जुदा है तो मुझसे न कर जुदा मुझको

वो कँपकपाते हुए होंठ मेरे शाने<ref>काँधे</ref> पर
वो ख़्वाब<ref>स्वप्न</ref> साँप की मानिंद<ref>्भाँति</ref> डस गया मुझको

चटक उठा हूँ सुलगती चटान की सूरत
पुकार अब तो मिरे देर-आश्ना<ref>चिर-परिचित</ref> मुझको

तुझे तराश<ref>घड़ ,काँट-छाँट</ref> के मैं सख़्त मुनफ़इल<ref>लज्जित</ref> हूँ कि लोग
तुझे सनम<ref>प्रतिमा</ref> तो समझने लगे ख़ुदा मुझको

ये और बात कि अक्सर दमक उठा चेहरा
कभी-कभी यही शोला <ref>अंगारा</ref> बुझा गया मुझको

ये क़ुर्बतें<ref>नज़दीकियाँ</ref> ही तो वज्हे- फ़िराक़<ref>विरह का कारण</ref> ठहरी हैं
बहुत अज़ीज़ <ref>प्रिय</ref> है याराने-बेवफ़ा <ref>बेवफ़ा</ref> मुझको

सितम <ref>अत्याचार</ref> तो ये है कि ज़ालिम <ref>अत्याचारी</ref> सुख़न-शनास <ref>बात समझने वाला</ref>नहीं
वो एक शख़्स <ref>व्यक्ति</ref> कि शाइर बना गया मुझको

उसे ‘फ़राज़’ अगर दुख न था बिछड़ने का
तो क्यों वो दूर तलक देखता रहा मुझको



शब्दार्थ
<references/>