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तरही ग़ज़ल: क़िस्सा-ए-मक़्तूल-ओ-क़ातिल एक और / ज़ाहिद अबरोल

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तरही मिसराः- हां कहो अफ़सानः-ए-दिल<ref>दिल की गाथा</ref> एक और

क़िस्सः-ए-मक़तूल-ओ-क़ातिल<ref>वधित और वधिक की कथा</ref> एक और
हां कहो अफ़सानः-ए-दिल<ref> दिल की गाथा </ref> एक और

ख़ुद को भूलोगे तो तय कर पाओगे
ख़ुदशनासाई<ref> स्वयं को पहचानाना</ref> की मंज़िल एक और

दिल में फिर ग़ोतः<ref>डुबकी</ref>लगा कर देख लो
क्या ख़बर मिल जाए वां<ref> वहां</ref> दिल एक और

शहर में इक तू ही तो क़ातिल नहीं
देख आईने में क़ातिल एक और

हम कहां से लायेंगे वो आंख जो
ढूंढ ले साहिल<ref>किनारा</ref> में साहिल एक और

सफ़्हः<ref> पृष्ठ, पन्ना</ref> इक ख़ाली है “ज़ाहिद” ज़ीस्त का
दर्द की तस्वीर-ए-कामिल<ref> संपूर्ण चित्र </ref> एक और

शब्दार्थ
<references/>