तरह-तरह से मुझे आज़माये जाते हैं
कभी क़रीब कभी दूर जाये जाते हैं
वो तेरे लम्स शामें मेरी संवार गये
वो नज़्मो-शेर में पैहम बुलाये जाते हैं
मिले वो हमसे तो आवाज़ में न थी लर्ज़िश
करे हैं कूच तो लब थरथराये जाते हैं
ये दाग़ रूह के हैं दिल के थोड़े हैं जानां
दिखाये जाते नहीं ये छुपाये जाते हैं
अजीब हाल है दिलशाद तिश्नग़ी का अभी
समंदरों में भी सहरा से पाये जाते हैं