भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तराना ये दिल का अनूठा फ़साना / अमर पंकज
Kavita Kosh से
तराना ये दिल का अनूठा फ़साना,
अकेले अकेले गज़ल गुनगुनाना।
सितम ढा रहीं हैं अदाएँ पुरानी,
रक़ीबों से मिलकर सदा मुस्कुराना।
अकेले में रहने की आदत हुई अब,
अँधेरों से कह दो मुझे क्या डराना।
मुहब्बत में ऐसी करो गुफ़्तुगू तुम,
कहो जब ग़ज़ल तो सभी को लुभाना।
नहीं दुश्मनी अब न है मीत कोई,
यहाँ बेसबब क्यों दिलों को दुखाना।
ख़बरदार रहना बड़े आलिमों से,
अदीबों को अपनी ग़ज़ल जब सुनाना।
न कर फ़िक्र कहता है क्या कौन तुझको,
‘अमर’ खोलकर दिल तू दिल की सुनाना।