तरीक़ कोई न आया मुझे ज़माने का / तनवीर अंजुम
तरीक़ कोई न आया मुझे ज़माने का
कि एक सौदा रहा जिंस-ए-दिल लुटाने का
फ़रेब-ए-ख़्वाब मिरे रास्ते को रोक नहीं
कि वक़्त-ए-शाम है ये ग़म-कदे को जाने का
तिरे वजूद से पहचान मुझ को अपनी थी
तिरा यक़ीन था मुझ को यक़ीं ज़माने का
ख़राब-ए-इश्क़ हूँ ख़ुद मौत हूँ मैं अपने लिए
सिखा रही हूँ हुनर ख़ुद को दिल जलाने का
हर एक शाख़-ए-सितम से मैं फूल तोड़ती हूँ
हुआ है शौक़ चमन-ज़ार-ए-ग़म बनाने का
नशा अजीब है इस जंग-ए-बे-समर का मुझे
ख़ुमार ख़ूब है ख़ून-ए-ख़िरद बहाने का
शब-ए-विसाल में इक नुक़्ता-ए-तवक्कुफ़ हूँ
और इक जुनूँ है उसे मंज़िलों को पाने का
दिल-ए-तबाह को बे-दाम बेच देती हूँ
कि कारोबार है ये जिंस-ए-ग़म कमाने का
मुझे अज़ीज़ है बे-एहतियाती-ए-सादा
न शौक़ है न हुनर उस को आज़माने का
क़फ़स बदन का मुझे कुछ मिरा सुबूत नही
ये ताइर-ए-दिल-ओ-जाँ लौट कर न आने का