तरुण साक़ी भी हो जो साथ
अधर पर धरे मधुर मुसकान,
सुरा के रँग की भी अविराम
मदिर जो वृष्टि करें भगवान!
स्वर्ग की हूरें स्वयं उतर
सुनाएँ भी जो अश्रुत गान,
नहीं यदि प्रेमोन्मत्त हृदय
स्वर्ग भी है तब नरक समान!
तरुण साक़ी भी हो जो साथ
अधर पर धरे मधुर मुसकान,
सुरा के रँग की भी अविराम
मदिर जो वृष्टि करें भगवान!
स्वर्ग की हूरें स्वयं उतर
सुनाएँ भी जो अश्रुत गान,
नहीं यदि प्रेमोन्मत्त हृदय
स्वर्ग भी है तब नरक समान!