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तरु के छोटे-से हे किसलय / रामकुमार वर्मा

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तरु के छोटे-से हे किसलय!
तरु-उर में ही रहो छिपे,
इच्छा के रूप रहो छविमय॥
जग कितना भीषण है इसमें,
घृणा, वेदना, भीषण भय,
जीवन क्या है? पीड़ा का--
संघर्ष और दुख का अभिनय॥
एक उमंग रहो, पृथ्वी की--
सृजन शक्ति के मधु संचय!
आज प्रकृति का सब रहस्य
तुमको देगा अपना परिचय॥
तरु के छोटे-से हे किसलय!