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तरु बिलखा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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तरु बिलखा
मेरा क़ुसूर क्या है
छीना न कुछ
मैंने कभी किसी का
दिए हैं सदा
फल ,फूल व छाया
बदला मिला-
काट डाली डालियाँ
नोंचे हैं पात
नीड़ सब बिखेरे
पादप था मैं
पैरों से पीता पानी
दुःख ने लिखी
मेरी यही कहानी।
सूखी हैं झीलें
नग्न सब शिलाएँ
तपता सूर्य
माथा मेरा जलाए
रो भी न पाऊँ
सूखे हैं मेरे आँसू
बिदा कर दया को
तुमने लिया
कुठार किसलिए
कुछ दया करना।
-0-[21 जुलाई 18]