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तरूण से / त्रिलोचन
Kavita Kosh से
तरूण,
तुम्हारी शक्ति अतुल है
जहाँ कर्म में वह बदली है
वहॉं राष्ट्र का नया रुप
सम्मुख आया है
वैयक्तिक भी कार्य तुम्हारा
सामूहिक है
और
जहाँ हो
वहीं तुम्हारी जीवनधारा
जड़ चेतन को
आप्यायित, आप्लावित करती है
कोई देश
तुम्हारी साँसों से जीवित है
और तुम्हारी आँखों से देखा करता है
और तुम्हारे चलने पर चलता रहता है
मनोरंजनों में है इतनी शक्ति तुम्हारे
जिससे कोइ राष्ट्र
बना बिगड़ा करता है
सदा सजग व्यवहार तुम्हारा हो
जिससे कल्याण फलित हो।