तर्कों की बौछार में हँसता घाघ शिकारीपन का सच / राम मेश्राम
तर्कों की बौछार में हँसता घाघ शिकारीपन का सच
बूढा हंस कहे सुन प्यारी, तेरा-मेरा-उसका सच
वह खलनायक जिसे नायिका खुद अपने को पेश करे
साफ हक़ीक़त भी है गोया फ़िल्मी क़िस्सों जैसा सच
मुफलिस मौत मरे भुवनेश्वर, शहर-बदर हो जाए शरद
जिसे उछाले खेमा अपना वही असल रचना का सच
दारूबाज़ी, औरतबाज़ी, शोहरतबाज़ी से होकर
खिलता महाजीनियस तेरी प्रगतिशील कविता का सच
दिखलाती है रोज़ वकालत पेशेवर सच्चाई को
करती है इन्साफ़ अदालत, आता हाथ अधूरा सच
एक तरफ़ है सारी दुनिया, एक तरफ़ है मेरा मैं
ठोस अना में तना हुआ है सबका अपना-अपना सच
कौन नहीं है वाकिफ़ मन के काले-उजले चेहरे से
किसकी हिम्मत है सुनने की अपने मुँह पर कड़ुवा सच
नंगी आँखों से जो दिखता होता वह भी सत्य कहाँ
अख़बारों के अपने चेहरे, दीवारों का अपना सच
काँधे अरथी और जुबाँ पर नारा सत्यमेव जयते
आज सत्य की मय्यत में भी जीत रहा है झूठा सच