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तलाशे यार में हैं यार कहीं मिलता नहीं / रंजना वर्मा

तलाशे यार में हैं यार कहीं मिलता नहीं
हमारे ग़म के तलबगार कहीं मिलता नहीं

हँसें औरों पे हैं ऐसे तो कई लोग यहाँ
हों ग़म में साथ वो गमख़्वार कहीं मिलता नहीं

जिसे सुना सकें हम दिल की कहानी अपनी
तलाशते हैं राज़दार कहीं मिलता नहीं

ज़माने से तो हैं बेज़ार बहुत लोग मगर
ढूँढिये खुद से ही बेज़ार कहीं मिलता नहीं

मेरे गिरने पे वो हँस देते हैं ग़ैरों की तरह
बढ़ाये हाथ मददगार कहीं मिलता नहीं

जहाँ बिकती हैं मसर्रत हँसीं औ मुस्कानें
ज़माने भर में वो बाज़ार कहीं मिलता नहीं

दिखी हैं बस्तियाँ दुश्मन की तो हर सूं लेकिन
दोस्त मिलता ही नहीं प्यार कहीं मिलता नहीं