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तलाश / आरती कुमारी
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					सब संसाधन होते हुए भी
रिक्तता है, अवसाद है, खालीपन है!
मन चाहता है अपनों का संसर्ग
जो हमारी संवेदना को 
महसूस कर सके
और भर दे एहसास से 
हमारे मन की गइराईयों में
दम तोड़ती आशा की झीलों को ।
जलाना चाहता है मन
अपनेपन का एक दीया
जो जले विश्वास की बाती से 
और छँट जाए जिससे  
संवादहीनता का अंधेरा।
बजाना चाहता है मन
शब्द, लय, भावों का संगीत
अभिव्यक्ति की निर्झरणी
जो प्रदान कर सके दिलों को जीवन्तता 
और बनी रहे हमारे जीने की उम्मीद ।
छुड़ाना चाहता है मन
एकाकी होते, भावना शून्य होते
कर्तव्यों के तानें बानों से घिरे
अपने ही मकड़जाल में फँसे
प्रगति के साधको को ।
 तलाश ...जारी है ....!!
 
	
	

