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तलाश / केशव
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कोई गाता है
कोई रोता है
जीवन में
कुछ-न-कुछ तो होता है
तू इसमें से गुजर
मत टूट
व्यथा के निर्मम पंजों में
दे नेत्र अपनी सामर्थ्य को
अपने ही माध्यम से
पायेगा तू
लगता है पराये कंधों से
जो असम्भव
ईश्वर की तलाश में
भटकने से
कब मिला है कुछ
मन्दिर तो भीतर है
और तलाश अपनी