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तसवीरें / कुमार अंबुज
Kavita Kosh से
आधी शताब्दी पुराने इस चित्र में
दिख रहे हैं जो ये तीन लोग
ये ही थे अपनी प्रजाति के आख़िरी जन
1963 के बाद ये फिर नहीं दिखे
और यह उस तितली की तसवीर है
जो लायब्रेरी की रद्दी में मिली अचानक
लेकिन अब वह कहीं नहीं है इस संसार में
जो प्रजातियाँ इधर-उधर लुक-छिपकर
बिता रही है अपना गुरिल्ला जीवन
जारी है उनका भी सफ़ाया
विचारों का भी किया ही जा रहा है शिकार
अब तो किसी विचार की तसवीर देखकर
उसे पहचानना भी मुश्किल
कि किस विचार की है यह तसवीर आखिर !