भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तसव्वुर / तुम्हारे लिए, बस / मधुप मोहता
Kavita Kosh से
गर्म साँसें, नर्म से अहसास, ख़ुशबू
बिजलियाँ, बदली, हवा के सर्द झोंके
कुछ तुम, कुछ तुम्हारी याद की पुरवाइयाँ,
थोड़ा मैं ठगा-सा, और ये भीगा हुआ मौसम
फिर महकी हुई सी शाम, फिर चश्मे-नम
छलकती मस, पिघलती बर्फ, ठहरे ग़म,
ठिठुरती चाँदनी, बहका मैं, सिहरती तुम
तुम ज़रा गुमसुम तुम्हारे जिस्म पर शबनम
तसव्वुर है तुम्हारा तुम नहीं मेरे सनम।