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तस्लीमा नसरीन : दो कविताएं / शहंशाह आलम

एक

झुंड की झुंड लड़कियां हिंसक खुरों का शिकार हुई हैं
आदिम गिद्धों ने नोचा है उनकी देहों से मांस
ढेरों बार उनकी खाल निकाल ली गई है
शुभाशंका ने बहुत तंग किया है उनको
धर्मगुरुओं ने बार-बार जारी किया है फतवा
उनके ख़िलाफ करोड़ों-करोड़ बार

एक बार फिर सारी यातनाएं एक साथ
हमलावर होने के लिए बेक़रार हो रही हैं

जहां वो काम करती हैं संभव-असंभव
जिस रास्ते होकर वो रोज़ काम पर से लौटती हैं
जिस रास्ते होकर वो बाज़ार जाती हैं
उन रास्तों में उन गलियों में
लगातार अवरोध पैदा किया जाता रहा है
लगातार उलझनें पैदा की जाती रही हैं

लड़कियां बहुत कम मक़बूल होती हैं या कि
उन्हें मक़बूल होने नहीं दिया जाता तस्लीमा नसरीन

अक्सर लड़कियां अपनी नाजुक अदाओं के लिए
या मिस वर्ल्ड चुनी जाने के लिए मक़बूल कर दी जाती हैं
या फिर प्रार्थनाओं का नया शिल्प विकसित करने के लिए
लज़ीज़ खाना बनाने के लिए भी मक़बूल हो जाती हैं लड़कियां

बताओ तस्लीमा नसरीन ज़रूर बताओ
तुम्हारे टेलीफ़ोन के तार में उड़नतश्तरी कभी नहीं अटकी
तुम्हारी छत पर कोई अंतरिक्ष यान नहीं उतरा
तुम्हारे यहां बड़े अधिकारी मंत्री नहीं पहुंचे
फिर भी तुम मक़बूल क्यों हो गईं कि
अफरा तफरी-सी होने लगी पृथ्वी के विस्तार में

तस्लीमा नसरीन
लो लुटिया भर शुद्ध पानी तुम भी
कर लो वजू हो जाओ पाक-साफ़
घर चहारदीवारी में क़ैद होकर
मांग लो स्वस्थ सार्थक सभ्य
कहे जाने वाले समाज के शक्तिवानों
और इबादतगाहों के रखवालों से मुआफ़ी

हो सके तो तुम भी अपनी नाजुक अदाओं के लिए
मक़बूल होने का जतन करो
हो सके तो पांचों वक्त नमाज़ पढ़ो सिर्फ
और शादी करके शौहर की ख़िदमत में लग जाओ
पा लो जन्नत पा लो मन्नत

हो सके तो ऐसा लिखो सिर्फ़
जिससे उन्हें ‘लज्जा’ न आए
और वे पुरुष बने रहें शताब्दियों तक

दो

वह पृथ्वी को रहने योग्य बनाना चाहती है
वह प्रेम के वितान में भटकना चाहती है
और नदी की निस्तब्धता में मछलियां भर देना चाहती है

उसके अंतस में कुछ भी अनाप-शनाप छिपा नहीं है
उसकी आंखें बाघिन की अलसाई हुई आंखों की तरह नहीं लगतीं
किसी तरह का कोई भेद कोई कृत्रिम अंतरीप
नहीं मिलता है वहां न तपती दोपहर
न बर्बर अक्षर न भय पैदा करने वाले ग्रह-नक्षत्र

हवा उसको बांधना चाहती है
पानी उसको आहत करना चाहता है
दुश्मन नाविक उसको समुद्र की गहराई में डाल देना चाहता है
जंगल उसको अपने अंधकार में लपेट लेना चाहता है

लेकिन अभी बहुत कुछ लिखा जाना है उसकी क़लम से
याद करनी हैं उसको बहुत सारी नज़्में
नज़्मों में छिपे रहस्यों को उजागर करने हैं
अभी पूरा का पूरा इतिहास बदलना है उसे
बचाने हैं अन्न और शब्द और जीवन बचाना है उसे

शायद इसीलिए शायद इसीलिए
उसकी जीवंत धडकनों से बहुतों को ख़ौफ होता है

शायद इसलिए भी कि
उसके एजेंडे में विद्रोह के स्वर
डायनासॉर बनकर आते हैं
और पृथ्वी रुकी हुई नहीं लगती।