तस्वीरें / नरेश अग्रवाल
बचपन की सिर्फ दो या तीन तस्वीरें थी हमारी एक साथ
सब में , मैं उनकी बगल में खड़ा हुआ
पर किसी में भी हंसता हुआ नहीं
मालूम नहीं यह कैसी चुप्पी थी यह
जो हमेशा हमारे साथ रही
शायद बचपन से ही मैं अपना भविष्य
अलग तरह से सोचता था,
और शायद, वे अलग तरह से रखना चाहते थे मुझे।
मेरे अपने बेटे के साथ भी कम ही हैं तस्वीरें
उनमें भी हम हंसते हुए नहीं
बस पिता और पुत्र की तरह एक साथ खड़े हैं हम।
हर दिन बड़ा होता जा रहा है बेटा
अपने ख्वाब, अपनी खूबसूरत आंखों से देखता है
और मेरे पास आकर भी अपनी ही दुनिया में खोया हुआ
कभी कोई मजाक की बात आती तो हम हंसते भी
लेकिन तस्वीरें कौन खींचता हमारी उस मौके पर
ऐसा नहीं है कि हम हंस नहीं सकते साथ-साथ
जब वह छोटा था हम हंसे थे कई बार
एकदम शुरूआत में, जब वह बात-बात पर हंसता था
इतनी प्यारी हंसी कि जिसका कोई साथ नहीं छोडऩा चाहता था
अब तो समय के साथ कितना बदल गया है वह
उसकी दाढ़ी के कड़े-कड़े बाल
उसके हंसने से पहले ही तन जाते हैं हमारी ओर।