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तस्वीर का रंग नज़र में है / जमुना प्रसाद 'राही'
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तस्वीर का रंग नज़र में है
क्या बात तेरे दस्त-ए-हुनर में है
सोना सा पिघलता है रग ओ पै में
ख़ुर्शीद-ए-हवस कासा-ए-सर में है
निकला हूँ तो क्या रख़्त-ए-सफर बाँधूं
जो कुछ है वो सब राह-गुज़र में है
इक रात है फैली हुई सदियों पर
हर लम्हा अँधेरों के असर में है
पानी है सराबों से विरासत में
वो ख़ाक जो दामान-ए-नज़र में है
पेशानी-ए-आईना पे हो ज़ाहिर
जो जख़्म दिल-ए-आईना-गर में है
क्या महकें तमन्नाओं के गुल बूटे
वीरानी-ए-सहरा मेरे घर में है