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तहकीकात / संजीव 'शशि'

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कब कौन कहाँ कैसे आखिर,
सब कुछ खुल करके बतलाओ।
साहब जी तहकीकात करें,
क्या हुआ मुझे तुम समझाओ।।

जब उसने तुमको था पकड़ा,
क्या बाँधा कोई बंधन था।
तुमने प्रतिरोध किया या फिर,
थोड़ा सा मौन समर्थन था।
चोटें असली हैं या नकली,
कैसी हैं मुझको दिखलाओ।।

क्यों गयीं अकेले बाहर तुम,
इस बारे में है क्या कहना।
क्यों जागी उसमें कामुकता,
ऐसा तुमने था क्या पहना।
अब नेक राय मेरी मानो,
चुपचाप उठो तुम घर जाओ ।।

जिसकी है लाज लुटी वह ही,
है विवश खड़ी अपराधी-सी।
तन घायल, मन घायल लेकर,
सबको देखे फरियादी-सी।
केवल इंसाफ माँगती वह,
अब और उसे मत उलझाओ।।

अब तो जागो कुछ तो बोलो,
अधरों का मौन तोड़ भी दो।
जो अपराधी के साथ खड़े,
तुम उनका साथ छोड़ भी दो।

कल यही सभी के साथ न हो,
सर झुका बाद में पछताओ।।