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तहरा के हम आपन प्रभु बना के राखी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

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“तहरा के हम आपन प्रभु बना के राखीं”
बस, अतने अहंभाव हमरा में रह जाय बाकी।
“हम अपना चारू ओर खाली तहरे के देखीं
सब तरह से अपना के तहरे में समर्पित करीं
तहरा प्रति अपना प्रेम के रात दिन जोगवले रहीं”
हमरा में, बस, अतने इच्छा रह जाय बाकी।
“तहरा के हम अपना अहं से कबहूँ ना ढाँकी”
अतने अहं भाव, बस, हमरा में रह जाय बाकी।
तहार लीला हमरे में साकार होई
एहीं से हमरा के एह संसार में
बान्ह के रखले बाड़ऽ एहँगईं।
तहरा प्रेम डोरी से हम हरदम बंधाईल रहीं
अतने बंधन, बस, हमरा में रह जाय बाकी।