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तहार साथ ए जिनगी / पाण्डेय आशुतोष
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तहार साथ ए जिनगी
हमसे ना होई!
अँसुअन में डूब गइल सगरो कहानी।
बेमौसम हर गलियन भइनीं बेपानी।।
आनी-बानी दुनियाँ भर के सुन-सुन के
चन्दन अस माटी में के माहुर बोई।।
तहार साथ ए जिनगी
हमसे ना होई।।
रात-रात भर पपिहा पिहके पिछुआरे।
उठ-उठ के झाँक आईं अपने दुआरे।।
आँसू पोंछे वाला जहवाँ ना केहू,
अन्हरन में रो-रो के के दीदा खोई।।
तहार साथ ए जिनगी
हमसे ना होई।।
दिन भर खटते-खटते प्रान ई मरेला।
तब जाके दियना में तेल कुछ जरेला।।
अपने-अपने में सबकर दुनियाँ सिमटल,
मीत नाहीं एको, आ दुसमन सब कोई।।
तहार साथ ए जिनगी
हमसे ना होंई।।