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तहे-नुजूम / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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तहे-नुज़ूम कहीं चांदनी के दामन में
हुजूमे-शौक से इक दिल है बे-करार अभी
ख़ुमारे-ख्वाब से लबरेज़ अहमरी आंखें
सफ़ेद रुख़ पे परीशान अम्बरी आंखें
छलक रही है जवानी हर इक बुने-मू से
रवां हो बरगे-गुले-तर से जैसे सैले-शमीम
ज़िया-ए-मह में दमकता है रंगे-पैराहन
अदा-ए-इजज़ से आंचल उड़ा रही है नसीम
दराज़ कद की लचक से गुदाज़ पैदा है
उदास आंखों में ख़ामोश इल्तिजाएं हैं
दिले-हजीं में कई जां-ब-लब दुआएं हैं
तहे-नुज़ूम कहीं चांदनी के दामन में
किसी का हुस्न है मसरूफ़े-इंतज़ार अभी
कहीं ख्याल के आबादकरदा गुलशन में
है एक गुल कि नावाकिफ़े-बहार अभी