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ताँका-1-16 / भावना कुँअर

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1.
सालता रहा
सदियों तक दुख
परछाई-सा
होकर फिर दूर
भागता रहा सुख

2.
भूली थी आँखे
पलकें झपकना
देखा था जब
यूँ मैया यशोदा ने
पालने में ललना

3.
भरे कुलाँचे
निर्रथक प्रयास
बड़ा उदास
बहुत ही सलौना
मासूम मृगछौना

4.
लगी जो प्रीत
मेरे मन के मीत
भई बावरी
भूल गई जग की
रिवाज और रीत

5.
हो गई भोर
गुनगुनाते पंछी
चारों ही ओर
छिपकर बैठा है
मेरे मन का मोर

6.
सह न पाया
ये कोमल शरीर
लू के थपेड़े
लगते तन पे ज्यूँ
आग लिपटे कोड़े

7.
अकेलापन
हमेशा रहा साथ
वो बचपन
अब तक है याद
सौगात सूनापन

8.
फेंकने लगा
आग से भरा गोला
चेहरा भोला
सूरज महाराज
अब आ जाओ बाज

9.
मुश्किल बड़ा
जीवन का सफ़र
मिलता नहीं
जो निभाए साथ,ये
काँटों भरी डगर

10.
फूल औ’ पत्ते
देख के पतझर
यूँ बेतहाशा
डर के जब दौड़ें
कहलाएँ भगौड़े

11.
हमेशा दिया
अपनों ने ही धोखा
मैं भी जी गई
उफ़ बिना किए ही
ये जीवन अनोखा

12.
भागती रही
परछाई के पीछे
जागती रही
उम्मीद के सहारे
अपनी आँखे मींचे

13.
चिड़िया बोली
झूम उठी वादियाँ
वातावरण
भरा मिठास से यूँ
ज्यूँ मिसरी हो घोली

14.
अभागा मन
है सहारा तलाशे
कितनी दूर
इस जहाँ से भागे
टूटे, नेह के धागे

15.
अलसाया -सा
मलता था सूरज
उनींदी आँखें
खोल न पाए पंछी
फिर अपनी पाँखें

16.
जीवन भर
आतंक के साये में
जीते हुए भी
खोजती थी हमेशा
उजाले की किरण