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ताँगे वाला घोड़ा / शशिकान्त गीते
Kavita Kosh से
जीवन नहीं बन्धुवर मेरे
ताँगे वाला घोड़ा ।
आगे-आगे रहे देखते
हाँफे, भागे, फेन फेंकते
मन से रुके नहीं पल भर को
सोच न पाए थोड़ा ।
केवल नभ पर धूल उड़ाई
और समय की चाबुक खाई
मुड़े इशारों पर लगाम ने
जैसे चाहा मोड़ा
पेट भरा हो या हो ख़ाली
नहीं किसी को दी है गाली
औरों के सपनों को ढोकर
ठाँव-ठिये पर छोड़ा ।