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ताकते मुंह तुम्हारा और मेरा / मालचंद तिवाड़ी

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काश ! यदि शब्द नहीं होते
तुमसे और मुझ से पहले ।

अक्षरों की तरह
हम भी जुड़ कर होते
सृष्टि का पहला शब्द ।
रचते अर्थ
पहला पद
पहला पदार्थ ।
नहीं पहचानते हमें जगत के बातूनी
तकते मुंह तुम्हारा और मेरा ।

हम उस शब्द में साथ मुस्कुराते
जैसे अवश्य मुस्कुराते होंगे
विद्वानों को माथा-पच्ची करते देख कर
ढाई-आखार !

अनुवादः नीरज दइया