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ताकि बाद में दुख न हो / विजयदेव नारायण साही

जहाँ मैं इस वक़्त हूँ
वहीं से आवाज़ दूंगा।
क्या है जो इस बेबुनियाद ख़ामोशी में
अभिव्यक्त होना चाहता है?

पहले तो उस आदमी की याद
जिसे याद करना न करना
दोनों ही बेमानी हो गए हैं।
फिर उन सपनों की याद
जिन से कभी कोई सरोकार नहीं रखा-
ताकि बाद में दुख न हो।