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ताड़ झाड़ / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
Kavita Kosh से
बे तुके किस तरह कहाएँगे।
बे तुकी जो नहीं सुनाएँगे।1।
तो कहे जाएँगे जले तन क्यों।
आग घर में न जो लगाएँगे।2।
है बढ़ाना समाज को आगे।
पाँव पीछे न क्यों हटाएँगे।3।
हैं बड़े, नाम है बड़प्पन में।
लाल अपने न क्यों लुटाएँगे।4।
बीर हैं, आँख में लहू उतरे।
क्यों न सगे का लहू बहाएँगे।5।
हैं दुखी, हो गयी जलन दूनी।
लड़कियों को न क्यों जलाएँगे।6।
जब बड़े आन बान वाले हैं।
अनबनों को न क्यों बढ़ाएँगे।7।
लीडरी किस तरह सकेगी बच।
फूट की जड़ न जो जमाएँगे।8।
देस को पार जब लगाना है।
जाति को क्यों न तो डुबाएँगे।9।
क्यों मिलेगा स्वराज, सब हिन्दू।
जो न नाकों चने चबाएँगे।10।