तानसेन की नगरी से जो गीत सन्देसा बनकर आए,
तुम दृग से पढ़ लो, प्राणों से सुन लो, वह जो कुछ भी गाए,
संघर्षित कवि के जीवन को अगर भैरवी दुहराती है,
वे निर्माणी गीत उठेंगे, जो अब तक भी हैं अनगाए ।
तानसेन की नगरी से जो गीत सन्देसा बनकर आए,
तुम दृग से पढ़ लो, प्राणों से सुन लो, वह जो कुछ भी गाए,
संघर्षित कवि के जीवन को अगर भैरवी दुहराती है,
वे निर्माणी गीत उठेंगे, जो अब तक भी हैं अनगाए ।