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तापमान 47 डिग्री सेल्सियस / शहनाज़ इमरानी

बन रही ऊँची इमारत
कि थोड़ी-सी छाँव में बैठ कर
वो खाती है सूखी रोटी
प्याज, हरी मिर्च कुतर कर

कारीगर चिल्लाता है
"अरी ओ महारानी खा लिया हो तो उठ जा"
वो बिना चबाए निवाला गटकती है
दिन भर ढोती है रेत और सीमेण्ट
छत पर ले जाती है ईंटें और पानी

शाम को मिली मज़दूरी से
बच्चों के लिए ख़रीदती है आटा-दाल
शराबी पति की मार खाकर भी
परोसती है उसे खाना और
रात होते ही जिस्म अपना
 
एक दिन उसने पति पर
कुल्हाड़ी से कर दिया वार
कितनी असमानता है
दिन भर मेहनत करके भी
मिलती है मज़दूरी कम जिसे
क्यों नहीं कर सकती वार वो आदमी पर
कब तक दबाए रखती गुस्से को अपने अन्दर