भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ताबेमे चुहरा बागमे जुमि गेल / मैथिली लोकगीत
Kavita Kosh से
मैथिली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
ताबेमे चुहरा बागमे जुमि गेल
दादा हौ कानमे जड़ी दै छै
मानुष तन आय दादा के छुटि गेल
सुगना रूप मलिनियाँ बनौलकै
सोना पिंजड़ामे दादा बैठल
सबे तमाशा सिरकीमे देखैय
डाकू चुहरा एलै सिरकीमे
लच लच मन चुहरा करैय
कछमछ मनवाँ आइ तऽ चुहरा के करै छै यौ।।