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तारण हार तुम्ही हो / प्रेमलता त्रिपाठी

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मर्यादा तुमसे जगत में',जीवन के आधार तुम्हीं हो ।
बढ़ी आपदा मीत कहाँ,नौका तारण हार तुम्ही हो ।

जन्म भूमि सदा तुम्हारी,अवध रही है राम नगरिया
अजब छिड़ा विवाद अब है,न्याय प्रीति की धार तुम्ही हो।

केवट माँगें उतराई , पार लगाया भव सागर से,
हानि धर्म की जब जब हो,लेते जो अवतार तुम्ही हो ।

मात पिता सेवा में तुम, रामरतन धन मान तुम्हारा,
अंश रूप गुण प्राण तुम्ही,हर पुनीत संस्कार तुम्ही हो ।

करूँ यजन महके सुवास,रामराज्य फिर से आयेगा
प्रेम जगत तुम हो भगवन,धरती का शृंगार तुम्हीं हो