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तारीकियों को दूर जहाँ से भगाइये / शोभा कुक्कल
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तारीकियों को दूर जहाँ से भगाइये
राहों में दीप आप किसी की जलाये
जीना जो चाहें आप बड़ी इज़्ज़तों के साथ
फिर अपना हाथ सबकी मदद को बढाइये
कहने हों शेर आपको गर हट के राह से
दिल में कोई ख़याल अछूता बसाइये
किस्मत का लिक्खा बदलेगा इक रोज़ बिल-ज़रूर
तदबीर को भी आप कभी आज़माइए
दिल में अगर तुम्हारे तमन्ना है फूल की
कांटे किसी की राह के बढ़ कर हटाइये
भरता है झोली नेमतों से सबकी वो सदा
सजदे में एक बार सर अपना झुकाइये
गर चाहते हैं आप अज़ीज़े-जहां बनें
हंस हंस के दुश्मनों को गले से लगाइये
आ जाएं हाल पूछने 'शोभा' का भी कभी
अपना भी हाल आ के किसी दिन सुनाइये।